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दिमाग की लड़ाई बंदूकों से नहीं लड़ी जा सकती- कैप्टन आलोक
जेकेएससी और इतिहास विभाग के संयुक्त तत्वाधान में चल रहा है आयोजन
मेरठ, 09 मार्च। जम्मू कश्मीर की समस्या के समाधान के लिए नई पहल शुरू हुई है लेकिन इस मसले पर जिस तरह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हस्तक्षेप बढ़ा है उसके लिए बन्दूक नहीं दिमाग से लड़ना होगा। उक्त बातें ‘जम्मू काश्मीर- एक नवविमर्श’ विषयक दस दिवसीय कार्यशाला के दूसरे दिन रक्षा विशेषज्ञ कैप्टन आलोक बंसल ने कही।
चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में आयोजित कार्यशाला में जम्मू काश्मीर के रणनीतिक महत्व पर चर्चा करते हुए कहा कि हमारे देश में लोग जम्मू काश्मीर की चर्चा हमेशा होती है लेकिन आधे से अधिक लोगों को यह पता नहीं है कि इस राज्य का कितना हिस्सा आज भारत के पास है। ऐसे में इन विमर्श को बढ़ाने के लिए सबसे पहले यहां की भौगोलिक स्थिति को जानना होगा, तभी हम इस विषय को समाधान की तरफ ले जा सकते हैं।
आलोक बंसल के अनुसार पाक अधिकृत जम्मू काश्मीर का सबसे बड़ा हिस्सा गिलगित-बल्तिस्तान की चर्चा बहुत कम होती है जबकि यह अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण सामरिक दृष्टि से दक्षिण एशिया का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। इस कारण विश्व की सभी प्रमुख शक्तियां शुरू से ही इसपर प्रभुत्व स्थापित करने के प्रयास में रहती हैं। इतना ही नहीं यहां प्राकृतिक संसाधन भी प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। उन्होंने कहा कि यहां पाकिस्तान का प्रभुत्व है लेकिन सामाजिक और प्रशासनिक सुविधाओं के अभाव के चलते लोगों में रोष है। यह रोष इन कई बड़े प्रदर्शनों में खुलकर देखने को मिला है।
कार्यशाला खुले सत्र में जम्मू काश्मीर अध्ययन केन्द्र के निदेशक आशुतोष भटनागर ने प्रतिनिधियों के सवालों का जवाब दिया। वहीं, इतिहास विभाग की अध्यक्षा प्रो. आराधना ने मुख्य वक्ता कै. आलोक बंसल का पुष्प गुच्छ और स्मृति चिन्ह देकर स्वागत किया। कार्यशाला में मुख्य रूप से प्रो. विकास शर्मा, डॉ. महिमा मिश्रा, डॉ. हेमन्त पाण्डेय, डॉ. अजय विजय कौर, डॉ. नवीन गुप्ता, डॉ. चन्द्रशेखर सहित कई प्राध्यापक और शोध छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे। कार्यशाला के तीसरे दिन जम्मू काश्मीर के संवैधानिक स्थिति पर सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता संजय त्यागी और आतंकवाद विषय पर चर्चा करने लिए रक्षा विशेषज्ञ कर्नल जयबंस सिंह उपस्थित रहेंगे।