JKSC 04-Jan-2016 |
जोधपुर, 4 जनवरी। जम्मू कश्मीर स्टडी सेंटर की तरफ से महान दार्शनिक अभिनवगुप्त द्वारा आज से हज़ार वर्ष पूर्व 4 जनवरी 1016 को शिवमय होने के उपलक्ष्य में सोमवार की शाम विवेक संवित स्थल पर दीप प्रजवल्लन के साथ संकल्प सत्र आयोजित किया गया। शिवत्व प्राप्ति के एक हज़ार वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में पूरे साल आचार्य अभिनवगुप्त सहत्राब्दि समारोह मनाया जायेगा। 2016 को अभिनव वर्ष के रूप में मनाने के क्रम में यह पहला आयोजन था।
कार्यक्रम का शुभारम्भ अनंत पीठधीश पंडित विजयदत्त पुरोहित ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ दीप प्रज्वल्लित कर किया। आयोजन समिति के मुखिया वरिष्ठ न्यूरोसर्जन डॉ नगेन्द्र शर्मा ने आगामी कार्यक्रमों में युवाओं और बच्चों की सक्रिय भागीदारी पर बल देते हुए सांस्कृतिक संक्रमण के इस काल में अभिनवगुप्त के सांस्कृतिक गौरव की पुनर्स्थापना पर बल दिया। युवा शिक्षाविद निर्मल गहलोत ने शिक्षण संस्थानों के कार्यक्रमों से जुड़ाव को महत्वपूर्ण बताया। रंगकर्मी कमलेश तिवारी ने बताया कि शीघ्र ही अभिनवगुप्त के जीवन से जुड़े नाटकों का मंचन देश के विभिन्न स्थानों पर किया जाएगा।जम्मू कश्मीर स्टडी सेंटर की ओर से अयोध्या प्रसाद गौड़ ने आगामी महीनों में होने वाले आयोजनों की रूपरेखा प्रस्तुत की।
दीप प्रज्वलन के साथ आयोजित इस कार्यक्रम में आरजे रैक्स, रंगकर्मी मज़ाहिर सुल्तान ज़ई, अधिवक्ता महेंद्र त्रिवेदी, सुधांशु टाक, प्रीति गोयल, मुकेश मांडण, श्यामा प्रसाद गौड़, गोल्डी बिस्सा, यशवंत, निर्मला राव सहित विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि सम्मिलित हुए। दीप संकल्प सत्र के तत्पश्चात उपस्थित सदस्यों ने अभिनवगुप्त की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ने और उसके संरक्षण के प्रयास का संकल्प लिया।
ज्ञात रहे कि आधुनिक भौतिक शास्त्र के ध्वनि सिद्धांतों के प्रतिपादन से शताब्दियों पूर्व अभिनवगुप्त ने 'ध्वनि' को चौथा आयाम मानते हुए ध्वन्यालोक ग्रन्थ की रचना की थी। महाभारत की अनूठी व्याख्या करते हुए उन्होंने कौरव-पांडव युद्ध को अविद्या-विद्या संघर्ष के रूप में प्रस्तत किया था। अभिनवगुप्त ने अपने शिष्यों के साथ शिवस्तुति करते हुए श्रीनगर के पास बड़गांव जिले के बीरवा गांव की गुफा में प्रवेश किया जहाँ उन्हें 4 जनवरी 1016 को शिवत्व की प्राप्ति हुयी।
अभिनवगुप्त ने काश्मीर की प्राचीन आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत को नए और समन्वयकारी रूप में प्रस्तुत किया। काश्मीर के दिग्विजयी राजा ललितादित्य के अनुरोध पर अभिनवगुप्त के पूर्वज अत्रिगुप्त श्रीनगर पहुँचे थे। दुनिया के जाने माने विश्वविद्यालयों में उनके ग्रंथों पर व्यापक शोध जारी हैं और अंग्रेजी के अलावा फ्रेंच, जर्मन और स्पेनिश भाषा में उनके बारे में कई ग्रन्थ लिखे गए हैं।
अभिनवगुप्त तंत्रशास्त्र, साहित्य और दर्शन के प्रौढ़ आचार्य थे और इन तीनों विषयों पर इन्होंने 50 से ऊपर मौलिक ग्रंथों, टीकाओं तथा स्तोत्रों का निर्माण किया है। अभिरुचि के आधार पर इनका सुदीर्घ जीवन तीन कालविभागों में विभक्त किया जा सकता है। जीवन के आरंभ में अभिनवगुप्त ने तंत्रशास्त्रों का गहन अनुशीलन किया तथा उपलब्ध प्राचीन तंत्रग्रंथों पर इन्होंने अद्धैतपरक व्याख्याएँ लिखकर लोगों में व्याप्त भ्रांत सिद्धांतों का सफल निराकरण किया। क्रम, त्रिक तथा कुल तंत्रों का अभिनव ने क्रमश: अध्ययन कर तद्विषयक ग्रंथों का निर्माण इसी क्रम से संपन्न किया।
इस युग की प्रधान रचनाएँ बोधपंचदशिका, मालिनीविजय कार्तिक, परात्रिंशिकाविवरण, तन्त्रालोक, तन्त्रसार, तंत्रोच्चय, तंत्रोवटधानिका हैं। आलंकारिक काल युग से संबद्ध तीन प्रौढ़ रचनाओं काव्य-कौतुक-विवरण, ध्वन्यालोकलोचन तथा अभिनवभारती का परिचय प्राप्त है। अभिनवभारती, भरत मुनि के नाट्यशास्त्र के पूर्ण ग्रंथ की पांडित्यपूर्ण प्रमेयबहुल व्याख्या है। यह नाट्यशास्त्र की एकमात्र टीका है। दार्शनिक काल अभिनवगुप्त के जीवन में पांडित्य की प्रौढ़ि और उत्कर्ष का युग है। इस काल की प्रौढ़ रचनाओं में भगवद्गीतार्थसंग्रह, परमार्थसार, ईश्वर-प्रत्यभिज्ञा-विमर्शिणी तथा ईश्वर-प्रत्यभिज्ञा-विवृति-विमर्शिणी प्रसिद्ध हैं।